Art 2 Eye
Monday, April 11, 2011
पता ही नहीं ...
चौराहे पे ज़िन्दगी, राहे नयी, मंजिल नहीं,
रहबरों की बातो का भरोसा नहीं, खुद को रास्तो का पता नहीं,
जिन गलियों के निशान याद थे आज तक, उन मेह्फुस सडको पे अब कोई जाता नहीं,
गिरते सँभालते, घुट घुट के ही सही, ज़िन्दगी की डगर अभी ढूंढी ही नहीं ...
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