Monday, August 8, 2011

ek katputli si thi wo ...


एक कटपुतली सी थी वो,
चहकती, महकती,
हंसती, मुस्कुराती,
कभी कुछ चंचल सी कुछ कह जाती,

कहती थी,
हम जैसा कहेंगे, कर के दिखलाएगी,
बंधी डोर के इशारे पे नाच के दिखलाएगी,
कभी कुछ ऐसा ही समां बाँध जायेगी,

जाने कहा मेरे हाथो से वो कटपुतली खो गयी,
शायद वो भी मुझे भूल गयी,
यही सोच कर मेरे दिल की धड़कन भी सो गयी,
शायद वो किसी और की हो गयी,

फिर जाने क्यों फिर उसकी याद आई है,
उसको याद कर एक उदास सी मुस्कान आई है,
शायद अब वो किसी और के रिश्तो की डोर में बंधी है,
मुझसे दूर नजाने कहा खो गयी है ...