समंदर सा माँगा था एक एहसास ज़िन्दगी में,
उस छोर की तान्हायिया भूल गया,
भूल गया की समंदर में ही डूबती है खुशियों की नौका,
किनारे पे मिलने की आस ही झूटी थी,
आज आके वो आस भी टूटी थी,
संभाला तो बहोत था मंजिल पे पहुचने से पहले,
डूबी किस्मत में लिखी लकीरों के जैसे,
समंदर भी इतना निर्दयी निकला,
आंसू भी न दिखे डूबने से पहले...