Tuesday, April 2, 2013

padh daale hai khat jitne tamaam the ...

वो भुला बैठे है उनको, जो थे उनके ही काम के,
हमने संभाले रखे है वो किस्से जो आम थे,
यादो का दोंर कुछ इस तरह चला है मन में फिरसे,
खोल के पढ़ डाले है ख़त जितने तमाम थे।

Monday, April 1, 2013

wo thi to uski yaad nahi aati thi...

वो बारिश की बूंदों सी मिलती थी,
वो बागो में कलियों सी खिलती थी,
वो ठंडी हवा सी मेरे तन को छु जाती थी,
वो थी तो उसकी याद नहीं आती थी।

वो जीवन के पन्नो पे खुशिया ले आती थी,
वो बोले तो कानो को इतना भाती थी,
वो मैना सी मीठी मुझको गीत सुनाती थी,
वो थी तो उसकी याद नहीं आती थी।

वो चिड़िया सी चंचल, कितना चेह्काती थी,
वो आँखों के मोती युही नहीं बहाती थी,
वो मिलने को कहती, पर मिल नहीं पाती थी,
वो थी तो उसकी याद नहीं आती थी।

वो होती तो इस दिल में बहार होनी थी,
वो होती तो हर मौसम में बयार होनी थी,
वो होती तो मेरे जीवन का संसार होनी थी,
वो थी तो उसकी याद नहीं आती थी।

वो इस तरह तो मेरे दिल से दूर न होनी थी,
वो कहती इक दफा तो हमसे भी इनकार न होनी थी,
वो करती वफ़ा तो हमसे भी वो खता न होनी थी,
वो थी तो उसकी याद नहीं आती थी।

kisse ka hissa ...

उस छोटीसी झलक से शुरू हुआ उसका किस्सा,
बन बैठा था वो कुछ इस तरह मेरा हिस्सा,
बदल गए चेहरे बदलते मौसमो की तरह,
बदल गए जीवन कहानियो की तरह,
रूठे वो भी कुछ इस तरह हमसे,
तोड़ के ले गए उस किस्से से अपना हिस्सा।

kuch ankahi si yaad hai...

तूने जो कहा आज भी धुंधला सा याद है,
वो अनजाना अनदेखा चेहरा सा याद है,
वक़्त का कसूर कहु या हमारी ही कश्मेकस कहु,
दूर जाने की बातें कुछ अनकही सी याद है।


Sunday, May 20, 2012

doobte aansu

समंदर सा माँगा था एक एहसास ज़िन्दगी में,
उस छोर की तान्हायिया भूल गया,
भूल गया की समंदर में ही डूबती है खुशियों की नौका,
किनारे पे मिलने की आस ही झूटी थी, 
आज आके वो आस भी टूटी थी,
संभाला तो बहोत था मंजिल पे पहुचने से पहले,
डूबी किस्मत में लिखी लकीरों के जैसे,
समंदर भी इतना निर्दयी निकला,
आंसू भी न दिखे डूबने से पहले...

Tuesday, April 17, 2012

Sadiyo se


मुद्दतो  से इंतज़ार  का  ज़हर  पी  रहे  है ,
पलकों  में  आंसू लिए  फिर  रहे  है ...
जानते  है  तेरे  लिए  हम  कुछ  नहीं , फिर  भी ,
सदियों  से  एक मुलाकात  के  लिए  जी  रहे  है  ... 

Saturday, October 8, 2011

Waqt har waqt ek sa nahi rehta ...


जानता था, 
वक़्त हर वक़्त एक सा नहीं रहता,
कांपते थे लफ्ज़,
जब भी मैं यह बात कहता,
आज ज़हन में एक अजीब सी मुस्कुराहट,
और कही एक दबी सी उदासी भी है,
अब लगता है, 
शायद सही था मैं, 
वक़्त हर वक़्त एक सा नहीं रहता ...